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डिजिटल मीडिया में फिसड्डी केंद्र सरकार

शासकीय रीती-नीति के अभाव में अधर में लटकी वेब पत्रकारिता

इंदौर। जुलाई 2015 से लगातार प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी डिजीटल इंडिया का बिगुल बजा रहे है, लाल किले की प्राचिर से भी सुचना और प्रोद्योगिकी का  शंखनाद कर रहे हैं परंतु धरातल पर देखा जाए तो सरकार के कई विभागों के साथ-साथ मीडिया भी डिजिटलीकरण शंखनाद कर रहे हैं परंतु धरातल पर देखा जाए तो सरकार के कई विभागों के साथ-साथ मीडिया भी डिजिटलीकरण के नाम पर गच्चा ही खा रहा है|

विगत 3 से 4 वर्षों में मीडिया जैसे महत्वपूर्ण अंग के डिजिटलीकरण और प्रौद्योगिकी के उन्नत स्वरूप के उपयोग में सरकार उदासीन ही साबित हो रही है| देश में वेब मीडिया में हिंदी का विकास सन 2000 में यूनिकोड के आने के बाद 2003 में शुरू हुआ। 2003 में हिंदी में इन्टरनेट सर्च और ई मेल की सुविधा की शुरुआत हुई। देखा जाए तो हिंदी के विकास में यह एक मील का पत्थर साबित हुआ। 21वीं सदी के पहले दशक में ही गूगल न्यूज़, गूगल ट्रांसलेट तथा ऑनलाइन फोनेटिक टाइपिंग जैसे साधनों ने वेब की दुनिया में हिंदी के विकास में महत्वपूर्ण सहायता की। लगभग एक लाख से ज्यादा वेब पोर्टल संचालित हो रहे हैं परंतु सरकार उन्हें कानूनी जामा पहनाने तथा वेबनीति  बनाने में  अब तक कोई खास कदम नहीं उठा पाई है|

केन्द्र सरकार उदासीन, राज्य सरकारे आगे आई

राष्ट्रीय स्तर पर कोई संस्थान ऐसा नहीं बना जो भारत में संचालित वेब न्यूज पोर्टल की रीति-नीति बना पाएं, केवल  पत्र सूचना कार्यालय (पीआईबी, भारत सरकार) ही कुछ नियम बना पाया परन्तु वो भी पोर्टल को कानून के दायरे में लाने में असमर्थ रहा | इसके अलावा मध्य प्रदेश, बिहार, हरियाणा, झारखण्ड,उत्तरप्रदेश एवं छत्तीसगढ़ प्रदेश की राज्य सरकारों ने वेब मीडिया के पत्रकारों को प्रिंट व इलेक्ट्रानिक मीडिया के प्रतिनिधियों की भांति ‘प्रेस अधिमान्यता’ की सुविधा राज्य मुख्यालय एवं मण्डल/जिला स्तर पर प्रदान की है। परन्तु वे राज्यसरकारे भी पोर्टल को नियमानुसार कानुनी दायरे में लाने में असमर्थ है | वे विज्ञापन निति जरुर बना पाई परन्तु कानुनी नहीं कर पा रही है |

 

*क्या कहते है जानकार….*

 

निश्चित तौर पर वेब मीडिया भारत में समाचार सम्प्रेषण हेतु अग्रणी है और भारत सरकार इस दिशा में कार्य कर रही है।  जल्द ही रीती नीति बना रहे है।

. पी. फ्रेंक. नरोन्हा 

मुख्य महानिदेशक (एम एंड सी)

अफसोस की बात है कि देश में वेब मीडिया (न्यूज वेबसाइट व वेबपोर्टल) के प्रतिनिधियों के विभिन्न संगठनों की मांगों की लगातार की जा रही है। वेब मीडिया के पत्रकार अपने स्तर पर कई प्रयास करके थक चुके हैं। शासन स्तर पर उनकी आवाज सुनने वाला कोई नहीं है।

ना ही उन्हे कानूनी दायरे में लाया जा रहा है ना ही स्टार्टअप स्वीकारा जा रहा है | बेहद उदासीन है सरकार

डॉ. अर्पण जैन अविचल

(वेब पत्रकार एवं साफ्टवेयर इंजीनियर-सेंस टेक्नालाजिस कम्पनी के संचालक)

 

BOX::::

 

वेब मीडिया की रीति नीति हेतु सरकार को डॉ अर्पण जैन अविचलके सुझाव

 

  1. वेब पोर्टल को प्रेस एक्ट के दायरे में लाएं,
  2. पोर्टल्स का पंजीयन आवश्यक करें
  3. विभाग स्तर पर कुछ शुल्क लेकर पंजीयन करें ताकि राजस्व में बढ़ोतरी हों
  4. पंजीकृत पोर्टल्स को ही विज्ञापन उपलब्ध करवाए जाएं।
  5. पंजीयन उन्हीं पोर्टल को दिया जाएगा डोमेन कम से कम 5 साल के लिए हों।
  6. ऐसे वेबसाइट और पोर्टल जिनके दर का निर्धारण केंद्र सरकार के डीएवीपी से किया गया हो।
  7. वेबमीडिया और पोर्टल राज्य के जनसंपर्क विभाग में रजिस्टर्ड होना चाहिए।
  8. विज्ञापन मान्यता के आवेदन के लिए वेबसाइट-पोर्टल को अपना रजिस्ट्रेशन सूचना एवं जनसंपर्क निदेशालय में कराना होगा।
  9. विज्ञापन वितरण के उद्देश्य से वेब माध्यमों को 3 कैटगरी में बांटा जाएगा।सरकारी विज्ञापन उसी वेबसाइट और पोर्टल को दिया जाएगा, जिसके पास हर महीने कम से कम ढाई लाख HIT आते हों।HIT की गणना के लिए पिछले 6 महीने का रिकार्ड देखा जाएगा। इसके लिए भारत में वेबसाइट ट्रैफिक मॉनीटरिंग करने वाली कंपनी के रिकार्ड मान्य होंगे।
  10. वेब पोर्टल को पृथक रुप से आई टी एक्ट, सायबर एक्ट आदि के दायरे में लाएं |

 

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